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Religion & Astrology : भृगु संहिता एक ऐसा विशाल एवं बहुमुल्य ग्रंथ है जिसमें छिपे हैं कई जन्मों के राज़, ये ज्योतिषविद्या का सबसे रहस्मय और कठिन ग्रंथ क्यों है ? जानिए !

महर्षि भृगु द्वारा रचित ग्रंथ भृगु संहिता ज्योतिषविद्या का एक विशाल, महान तथा बहुमुल्य ग्रंथ है। भृगु ज्योतिष पद्धति को हिंदू ज्योतिष की सबसे रहस्मय और कठिन शाखा माना जाता है। कहा जाता है कि पाराशरी, जैमिनी और ताजिक पद्धतियों की भांति भृगु की शिक्षा प्राप्त नहीं की जा सकती क्योंकि भृगु पद्धति तर्कसंगत न होकर दैवीय शक्ति में विश्वास और साधना के बल पर आधारित है। इसी कारण भृगु का ज्ञान हमेशा कुछ परिवारों तक ही सीमित रहा है। वर्तमान में इस ग्रंथ की जो भी प्रतियां उपलब्ध है वह अपूर्ण अवस्था में हैं। भृगु संहिता में महर्षि भृगु ने अपने ज्ञान द्वारा ग्रहों, नक्षत्रों की गति को देख कर उनका पृथ्वी और मनुष्यों पर पड़ने वाले प्रभावों को जाना और अपने सिद्धांतो को प्रतिपादित किया। शोध एवं खोज के उपरांत उन्होंने ग्रहों और नक्षत्रों की गति तथा उनके पारस्परिक संबंधों के आधार पर कालगणना निर्धारित की गई। जिसके बाद भृगु संहिता की रचना हुई।

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भृगु संहिता को मानने वालों का कहना है कि इसमें विश्व के प्रत्येक मनुष्य के भाग्य का लेखा-जोखा है, सुनने में ये बात थोड़ी अविश्वसनीय ज़रूर लगती है लेकिन इस ग्रंथ में विश्वास करने वालों के लिए यह सत्य है। कहते हैं कि भृगु संहिता में किसी के भी भाग्य को दर्पण की तरह देखा जा सकता है। इस ग्रंथ में भारतीय ज्योतिषविद्या के प्रत्येक पक्ष का सूक्ष्म विवरण दिया गया है। इसलिए इसे ज्योतिषविद्या की अमूल्य तकनीक भी कहा जाता है। शास्त्रों में मिली जानकारी के अनुसार कहा जाता है कि महर्षि भृगु ने इस ग्रंथ की रचना सुषानगर से निष्कासन के बाद और गुजरात के भृगुकच्छ जाने से पूर्व की थी। उसी काल में उनके भाई और गुरु स्वायंभुव मनु ने मनुस्मृति की रचना की थी। महर्षि भृगु को सप्तर्षि का पद प्राप्त है। उन्हें भृगु संहिता के लेखक और अपने गुरु मनु के लिखे मनुस्मृति को सरंक्षित एवं संवर्धित करने के लिए जाना जाता है। महर्षि भृगु ब्रह्मा जी के 9 मानस पुत्रों में से एक हैं। महर्षि भृगु के वंशज ‘भार्गव’ कहलाते हैं और उनके वंशधर अनेक मन्त्रों के दृष्टा हैं। ऋग्वेद में उल्लेख आया है कि कवि उशना (शुक्राचार्य) भार्गव कहलाते हैं। महर्षि च्यवन इन्हीं के पुत्र हैं। भृगु के और भी पुत्र थे जैसे उशना आदि। ऋग्वेद में भृगुवंशी ऋषियों द्वारा रचित अनेक मंत्रों का वर्णन मिलता है जिसमें वेन, सोमाहुति, स्यूमरश्मि, भार्गव, आर्वि आदि का नाम आता है। भार्गवों को अग्निपूजक माना गया है। दाशराज्ञ युद्ध के समय भृगु मौजूद थे।

इनके रचित कुछ ग्रंथ हैं ‘भृगु स्मृति’ (आधुनिक मनुस्मृति), ‘भृगु संहिता’ (ज्योतिष), ‘भृगु संहिता’ (शिल्प), ‘भृगु सूत्र’, ‘भृगु उपनिषद’, ‘भृगु गीता’ आदि। ‘भृगु संहिता’ आज भी उपलब्ध है जिसकी मूल प्रति नेपाल के पुस्तकालय में ताम्रपत्र पर सुरक्षित रखी है। इस विशालकाय ग्रंथ को कई बैलगाड़ियों पर लादकर ले जाया गया था।

महान ग्रंथ भृगु संहिता द्वारा ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करने वाले सूर्य- चंद्रमा व अन्य सभी ग्रह और नक्षत्रों पर आधारित वैदिक गणित के इस वैज्ञानिक ग्रंथ के माध्यम से जीवन और कृषि के लिए वर्षा आदि की भी भविष्यवाणियां की जाती थी। इस ग्रंथ द्वारा किसी भी मनुष्य के तीन जन्मों के फल व सभी जानकारियां निकाली जा सकती हैं। उस कालखण्ड में कागज़ और छपाई के साधन नहीं थे इसलिए ऋचाओं को कंठस्थ कराया जाता था और इसकी व्यवहारित जानकारी शलाकाओं के माध्यम से शिष्यों को दी जाती थी। इसके बाद जब लिखने की विधा विकसित हुई तो तब मसि भोजपत्र और ताड़पत्र पर ऋचाओं को लिपिबद्ध करने का काम किया गया।

भारतवर्ष में भी कई हस्तलिखित प्रतियां पंडितों के पास उपलब्ध हैं किंतु वे अपूर्ण हैं। कुछ ऐसे परिवार हैं जिनके पास भृगु ज्योतिषविद्या का ज्ञान उपलब्ध है। जैसे पंजाब के होशियारपुर, उत्तर प्रदेश के मेरठ, वाराणसी और प्रतापगढ़, मध्यप्रदेश के सागर, उड़ीसा के गंजम और राजस्थान के करोई में भृगु पद्धति से भविष्यवाणी करने वाले कई ज्योतिषियों के परिवार हैं। इसके अतिरिक्त पुणे, दरभंगा (बिहार), कुरुक्षेत्र और बेंगलुरु में भृगु संहिता की दुर्लभ प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियां संरक्षित हैं। कुछ वर्ष पूर्व में मुम्बई, अहमदाबाद, पटना और कोलकाता में भी भृगु शास्त्रियों के परिवार थे किन्तु अब वहां इस परंपरा से भविष्यवाणी करने वाले कम ही ज्योतिषी रह गए हैं।

उनमें से एक पंजाब के होशियारपुर शहर के रेलवे मंडी इलाके में भृगुअन दी गली नाम से चर्चित भृगु शास्त्री रामानुज शर्मा जी हैं। यहां लगभग 5 हजार साल पुरानी ज्योतिष परंपरा आज तक फल-फूल रही है। इसे मानने वाले देश से ही नहीं, बल्कि विदेशी भी हैं। यहां राजनीतिज्ञ से लेकर फिल्मी अभिनेता तक भृगुअन दी गली आकर अपना भूत-भविष्य का पता कर चुके हैं।

श्री रामानुज शर्मा जी ने संस्कृत में डॉक्टर की उपाधि ग्रहण की हुई है। एक अखबार में छपे उनके एक इंटरवियू के दौरान उन्होंने बताया था कि, ”भृगु परंपरा में विदेशी अपार विश्वास करते हैं। वे पारंपरिक संकल्पनाएं जैसे भृगु ज्योतिष, ध्यान व शाकाहारवाद सीखते हैं। हर धर्म के लोग भृगु परंपरा को मानते हैं।”

उन्होंने ये भी बताया था कि भृगु संहिता तीन परिवारों के साझा भंडार में सुरक्षित रखा गया है और वह कई टन वजनी है। उपलब्ध पृष्ठों के लिए एक सूचकांक तैयार किया गया है, ताकि जरूरत पड़ने पर संबंधित हिस्से को देखा जा सके।”

जब कोई व्यक्ति उनके पास अपने अतीत और भविष्य के बारे में जानने के लिए आता है तो उन्हें भृगु शास्त्री को अपना नाम, जन्म तिथि, माता-पिता का नाम जैसी जानकारियां देनी होती हैं, उसके बाद भृगु संहिता में उससे संबंधित जानकारियां ढूंढी जाती हैं। 

अगर उससे संबंधित जानकारियां मिल जाती है तो व्यक्ति को बुलाया जाता है और उसे उसका अतीत व भविष्य बताया जाता है।”

कहा जाता है कि राजनीतिज्ञ जैसे पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी तथा हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल एवं फिल्म अभिनेताओं में धर्मेद्र, हेमा मालिनी, संजय दत्त जैसे सितारे भृगु शास्त्रियों से यहां आकर मिल चुके हैं। लेकिन ग्रंथ से सभी के बारे में जानकारियां प्राप्त नहीं की जा सकीं।

संपादकः मनुस्मृति लखोत्रा

( इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्त्रोतों से ली गई है जिसका उद्देश्य सामान्य जानकारी देना है )