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Divine Destinations: आज दर्शन कीजिए महादेव की रहस्यमयी गुफा “गुप्ता धाम” के, जहां भस्मासुर भगवान विष्णु के मोहिनी रूप से मोहित होकर भस्म हुआ था, जानिए ?

हिन्दू मान्यता के अनुसार सावन का महिना (श्रावण मास) बहुत ही पवित्र माना जाता हैं, क्योंकि यह महीना स्वयं देवो के देव महादेव से सम्बंधित हैं | सावन के महीने में हर कोई महादेव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करना चाहता हैं | वैसे तो देशभर के तमाम शिवालयों, ज्योतिर्लिंगों और भगवान् शिव से सम्बंधित सिद्ध मंदिरों में वर्षभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता हैं लेकिन सावन का महीना महादेव को अतिप्रिय हैं, इसलिए इन दिनों में यहाँ पहुचकर महादेव का दर्शन करने पर विशेष आनंद की अनुभूति होती है | ऐसा ही शिव का एक पवित्र धाम हैं गुप्तेश्वर धाम (गुप्ता धाम), जहाँ महादेव स्वयं प्राकृतिक शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं |

गुफा का प्रवेश द्वार
                                        गुफा का प्रवेश द्वार

बिहार के रोहतास जिले (सासाराम) के गुप्तेश्वर धाम (गुप्ता धाम) गुफा में स्थित शिवलिंग की महिमा का बखान आदिकाल व पौराणिक है । मान्यता है कि इस गुफा में जलाभिषेक करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरीं हो जाती हैं।

पुराणों में वर्णित भगवान शंकर व भस्मासुर से जुड़ी कथा को जीवंत रखे हुए ऐतिहासिक गुप्तेश्वरनाथ महादेव का गुफा आज भी रहस्यमय बना हुआ है। देवघर के बाबाधाम (बैजनाथ धाम) की तरह गुप्तेश्वरनाथ धाम यानी गुप्ता धाम बेहद श्रद्धा, शक्ति व् भक्ति का केंद्र है । जहाँ तक पहुँचने के लिए आपको दुर्गम पहाड़ो के पथरीले रास्ते और नदियों से होकर गुजरना होता हैं |

गुफा तक जाते श्रद्धालु
                                       गुफा तक जाते श्रद्धालु

यहां रामायण कालीन धार्मिक नगरी बक्सर (महर्षि विश्वामित्र का आश्रम, जहां श्रीराम-लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्र यज्ञ रक्षा के लिए ले गए थे) से पवित्र गंगाजल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाने की परंपरा है। रोहतास में अवस्थित विंध्य पर्वत श्रृंखला की कैमूर पहाड़ी के जंगलों से घिरे गुप्ता धाम गुफा की प्राचीनता के बारे में किसी को भी कुछ ज्ञात नहीं हैं । हालांकि, इसकी बनावट को देखकर पुरातत्वविद् अब तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि यह गुफा मानव निर्मित है या प्राकृतिक।

‘रोहतास के इतिहास’ सहित कई पुस्तकों के लेखक इतिहासकार श्याम सुंदर तिवारी कहते हैं कि गुफा के नाचघर व घुड़दौड़ मैदान के बगल में स्थित पाताल गंगा के पास दीवार पर उत्कीर्ण शिलालेख, जिसे श्रद्धालु ब्रह्मलिपि  के नाम से जानते हैं, को पढ़ने से संभव है इस गुफा के कई रहस्य खुल जाएं।

नदी पार करते श्रद्धालु
                                        नदी पार करते श्रद्धालु

गुफा में गहन अंधेरा होता है, बिना कृत्रिम प्रकाश के भीतर जाना संभव नहीं है। पहाड़ी पर स्थित इस पवित्र गुफा का द्वार 18 फीट चौड़ा एवं 12 फीट ऊंचा मेहराबनुमा है। गुफा में लगभग 363 फीट अंदर जाने पर बहुत बड़ा गड्ढा है, जिसमें सालभर पानी रहता है। इसे पातालगंगा कहा जाता है।

गुफा के अंदर प्राचीन काल के दुर्लभ शैलचित्र आज भी मौजूद हैं। इसके कुछ आगे जाने के बाद गुप्तेश्वर महादेव के दर्शन होते हैं। गुफा के अंदर अवस्थित प्राकृतिक शिवलिंग पर हमेशा ऊपर से पानी टपकता है। इस पानी को श्रद्धालु प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

इस स्थान पर सावन के महीने के अलावा महाशिवरात्रि के मौके पर मेला लगता है । पौराणिक ग्रंथो के अनुसार कैलाश पर्वत पर मां पार्वती के साथ विराजमान भगवान शिव ने जब भस्मासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे किसी के भी सिर पर हाथ रखते ही भस्म करने का वरदान दिया था ।

जलप्रपात
                                               जलप्रपात

भस्मासुर मां पार्वती के सौंदर्य पर मोहित होकर शिव से मिले वरदान की परीक्षा लेने के लिए उन्हीं के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा । भगवान शिव उसकी योजना समझ गए और कैलाश पर्वत से अंतर्ध्यान होकर बिंध्य पर्वत की इस पर्वत श्रृंखला पर प्रगट हुए | वह स्थान जहाँ वे प्रगट हुए वह “प्रगटनाथ” के नाम से प्रसिद्ध हुआ और वहां पत्थर को चीरकर निकले हुए स्वयंभू शिवलिंग का दर्शन मिलता हैं | भस्मासुर ने उनका पीछा अब भी नहीं छोड़ा, भगवान् शिव वहाँ से कुछ दूर सुगवा नदी को पार कर एक पर्वत को त्रिशूल से चीरते हुए गुफा बना गुप्त रूप से रहने लगे, लेकिन भस्मासुर महादेव को ढूंढते-ढूंढते इस गुफा में भी पहुच गया | भगवान विष्णु से शिव की यह विवशता देखी नहीं गई और उन्होंने मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर को मोह लिया | जब उस राक्षस ने उनसे शादी की इच्छा जताई तो उन्होंने उससे उनकी ही तरह नृत्य दिखने को कहा |  मोहिनी बने विष्णु भगवान ने खुद भी कमर और सिर पर हाथ रखकर नृत्य किया, मोहिनी के सौंदर्य जाल में फँस चुका भस्मासुर भूल गया कि सिर पर हाथ रखते ही वह खुद भी भस्म हो जायेगा | उसने जैसे ही नृत्य की मुद्रा की, वह भस्म हो गया | उसके बाद गुफा के अंदर गुप्त रूप से निवास कर रहे भोले नाथ बाहर निकले । तब से यह पवित्र गुफा गुप्ता धाम के रूप में और गुफा में प्राकुतिक रूप से विराजमान महादेव “गुप्तेश्वर नाथ” के नाम से प्रसिद्द हैं |

प्रगटनाथ महादेव
                                             प्रगटनाथ महादेव

सासाराम के वरिष्ठ पत्रकार विनोद तिवारी का कहना हैं कि शाहाबाद गजेटियर में दर्ज फ्रांसिस बुकानन नामक अंग्रेज विद्वान की टिप्पणियों के अनुसार, गुफा में भस्मासुर के जलने के कारण उसका आधा हिस्सा काला होने के सबूत आज भी देखने को मिलते हैं।

सावन में एक महीने तक बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नेपाल से हजारों शिवभक्त यहां आकर जलाभिषेक करते हैं। अति नक्सली प्रभावित क्षेत्र होने के वावजूद भी बक्सर से गंगाजल लेकर गुप्ता धाम पहुंचने वाले भक्तों का तांता लगा रहता है। जिला मुख्यालय सासाराम से 65 किमी की दूरी पर स्थित इस गुफा में पहुंचने के लिए भक्तों को काफी दुर्गम पहाड़ियों और नदियों को पार करना पड़ता हैं | यदि आपको भी मनोरम प्राकुतिक दृश्यों वाले साहसिक तीर्थयात्रा करने में आनंद आता हैं तो एक बार देवो के देव महादेव के इस चमत्कारिक गुफा में महादेव के दर्शन हेतु अवश्य जाए | हर हर महादेव |

लेखकः  पीयूष चतुर्वेदी

प्रयागराज ( उत्तर प्रदेश )

 

This Post Has 2 Comments

  1. Manusmriti Lakhotra

    Very nice Peeyush Ji….Its a beautiful, mysterious & amazing pilgrimage…

    1. Peeyush Chaturvedi

      Thank You mam. Yes you are right. It is such a lovely, mysterious and amazing pilgrimage.

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