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Way to Spirituality: श्री रामकृष्ण परमहंसजी के अनुसार ईश्वर की भक्ति दो प्रकार से की जा सकती है, जानिए कैसे ?

अध्यात्म डैस्कः एक प्रचलित कथा के अनुसार एक दिन रामकृष्ण परमहंस अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए थे। तभी एक शिष्य ने उनसे पूछा कि हमें भगवान की भक्ति किस तरह करनी चाहिए ?

परमहंसजी ने जवाब दिया कि भक्ति दो प्रकार से की जा सकती है। एक सकाम भक्ति और दूसरी निष्काम भक्ति। जब कोई भक्त किसी लक्ष्य प्राप्ति के लिए या किसी इच्छा की पूर्ति के लिए भक्ति करता है, पूजा-पाठ या तप करता है तो उसे सकाम भक्ति कहा जाता है। अधिकतर लोग यही भक्ति करते हैं, क्योंकि हर भक्त के मन में कोई न कोई इच्छा अवश्य होती है, जिसकी प्रार्थना वह भगवान से करता है।

निष्काम भक्ति के बारे में परमहंसजी ने कहा कि जब कोई भक्ति बिना किसी इच्छा के, बिना किसी लालच के भक्ति करता है तो उसे निष्काम भक्ति कहते हैं। भगवान सुख दे या दुख, व्यक्ति हर हाल में भक्ति करता है और भगवान से शिकायत नहीं करता है। अच्छे-बुरे समय को भगवान का प्रसाद समझकर स्वीकार करता है। निष्काम भक्ति को अहेतु की भक्ति भी कहा जाता है।

शिष्य ने पूछा कि अहेतु का क्या मतलब है? स्वामी ने जवाब दिया कि अहेतु यानी कोई भी हेतु शेष न होना। तुम मुझे प्रेम करो या न करो, मैं तुम्हें प्रेम करता हूं और हमेशा करता रहूंगा। यही अहेतु का प्रेम है। जब भक्त के मन अपने परमात्मा के लिए गहरा प्रेम हो जाता है, तब वह ईश्वर के और करीब हो जाता है। जो निष्काम भक्ति करते हैं और निष्कपट प्रेम करते हैं, वे जल्दी ही भगवान की कृपा प्राप्त कर लेते हैं।