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Way to Spirituality: नियति यही कहती है कि जो व्यक्ति योग्यता या अनुभव में आपसे कमज़ोर है उनसे विवाद करना व्यर्थ है ! जानिए भगवान शिव और रावण का एक प्रसंग…

अध्यात्म डैस्कः आपके आसपास या ऑफिस में कई ऐसे लोग होते होंगे जो अक्सर ऐसे लोगों के साथ बहस करते नज़र आते हैं जिनसे उनका कोई तालमेल ही नहीं होता। अपने से कम योग्यता, अनुभव और ज्ञान से कम व्यक्ति को क्रोध करने से कोई फायदा नहीं। बल्कि उनसे बहस करके आप अपने आप को ही नुकसान पहुंचाते हैं, क्योंकि जिस व्यक्ति का ज्ञान, बुद्धि और अनुभव जैसा है वह उसी तरह की बात आपसे करेगा और समझेगा। ऐसे लोग कम योग्य होते हुए भी अहंकारवश अपने से अधिक ज्ञानी व्यक्ति का अपमान कर देते हैं। ऐसे लोगों से बहस करके आप कभी नहीं जीत सकते इसका सही तरीका यही है कि आपको उन्हें सामान्य तरीके से समझाना होगा। हमारे शास्त्र भी यही कहते हैं कि आपको क्रोध और विवाद उसी से करना चाहिए जो आपके समान योग्यता रखता हो क्योंकि ऐसा व्यक्ति तर्क की कसौटी पर आपसे बात करेगा और आपकी बात को समझेगा। इस बारे में समझने के लिए भगवान शिव और लंकापति रावण का एक प्रसंग आपको सुनाना अच्छा रहेगा।

दरअसल हुआ यूं कि एकबार जब रावण ने कैलाश पर जाकर एक मुर्खतापूर्ण कदम उठाया तो भगवान शिव ने रावण पर क्रोध नहीं किया बल्कि मज़ाक-मज़ाक में ही उसे सबक सिखा दिया।  

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार एक दिन रावण के मन में आया कि मैं सोने की लंका में रहता हूं और मेरे आराध्य शिव कैलाश पर्वत पर, क्यों न भगवान शिव को भी लंका में लाया जाए, ये सोचकर रावण कैलाश पर्वत की ओर निकल पड़ा, क्योंकि रावण भगवान शिव को अपना आराध्य और गुरू समझता था। वो कई तरह के विचारों में डूबा हुआ कैलाश पर्वत की तलहटी में पहुंचा। 

सामने से भगवान शिव के वाहन नंदी आ रहे थे। नंदी ने उन्हें प्रणाम किया। रावण ने अहंकार में आगे से उन्हें कोई जवाब न दिया। नंदी ने फिर उनसे बात करने की कोशिश की तो रावण ने नंदी का अपमान कर दिया। रावण ने नंदी को बताया कि वो भगवान शिव को लंका ले जाने के लिए आया है। नंदी ने कहा, भगवान को कोई उनकी इच्छा के विरुद्ध कहीं नहीं ले जा सकता। रावण को अपने बल पर घमंड था। उसने कहा अगर भगवान शिव नहीं माने, तो वो पूरा कैलाश पर्वत ही उठाकर ले जाएगा। 

इतना कह कर उसने कैलाश पर्वत को उठाने के लिए अपना हाथ एक चट्टान के नीचे रखा। भगवान शिव कैलाश पर्वत पर बैठे सब देख रहे थे। कैलाश हिलने लगा। सारे गण डर गए। लेकिन, भगवान शिव अविचलित बैठे रहे। जब रावण ने अपना पूरा हाथ कैलाश पर्वत की चट्टान के नीचे फंसा दिया तो भगवान ने मात्र अपने पैर के अंगूठे से कैलाश को दबा दिया। रावण का हाथ कैलाश पर्वत के नीचे फंस गया। कितने ही प्रयास करने के बाद भी रावण का हाथ निकल ही नहीं पा रहा था। शिव अपने आसन पर निर्विकार बैठे मुस्कुरा रहे थे। तब रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र की रचना की। जिसे सुनकर शिव ने उसे मुक्त किया। रावण के लिए ये सबक यह समझने के लिए काफी था कि भगवान शिव के आगे उसकी शक्ति, योग्यता व अनुभव बहुत ही कम थी फिर भी अहंकारवश उसने अपने ही आराध्य का अपमान करने की कोशिश की थी….।