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Religion & Faith: ज्ञान और निर्वाण के स्वामी हैं श्री गणेश, उनके नाम का अर्थ और फायदे भी जान लें !

धर्म एवं आस्था डैस्कः सनातन धर्म में सभी देवी-देवताओं में श्री गणेश को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उनके बिना किसी भी पूजा-पाठ या धार्मिक कर्मकांड की पूर्णता नहीं होती, इसलिए श्री गणेश से निष्कपटता, विवेकशीलता, ब्रह्मज्ञान व निष्कलंकता आदि की प्राप्ति होती है। भगवान श्री गणेश के नाम के पीछे भी छिपे हैं कई रहस्य। कई विद्वानों का मानना है कि ‘ग’ अक्षर ज्ञान का और ‘ण’ अक्षर निर्वाण का प्रतीक है। ज्ञान और निर्वाण के ईश परब्रह्मा गणेश को मैं प्रणाम करता हूं। ये माना जाता है कि अगर आध्यात्मिकता के सर्वोच्च स्तर को पाना है या फिर अपने ईष्ट को पाना है तो अपने अंदर सुप्त अवस्था में मूलाधार चक्र में विराजमान गणेश को जगाना होगा।

एक दूसरे मत के अनुसार गणपति- गण+पति, यानि पालन करने वाला। ‘गण’ शब्द के विभिन्न अर्थ हैं- महर्षि पाणिनि के अनुसारः गण यानि अष्टवसुओं का समूह। वसु यानि दिशा, दिकपाल (दिशाओं का संरक्षक) या दिकदेव। अतः गणपति का अर्थ यानि दिशाओं के स्वामी। इसलिए ये भी कहा जाता है कि गणपति की अनुमति के बिना किसी भी देवता का कोई भी दिशा से आगमन नहीं हो सकता, इसलिए कहा जाता है कि मंगल कार्य करने से पहले या किसी देवता की पूजा से पहले गणपति का पूजन अनिवार्य है।

इस बार विनायक अवतरण सोमवार 2 सितंबर भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को होगा। मध्याह्न में शिशु रूप धरा था गणपति ने। इस चतुर्थी में चंद्रदर्शन से बचना होगा। नहीं बचे तो झूठा कलंक लग जाएगा। उसी तरह, जिस तरह से श्री कृष्ण को लगा था स्यमंतक मणि चुराने का। इसीलिए इसे कलंक चतुर्थी भी कहते हैं। लेकिन अगर चंद्र को देख ही लिया तो इसी कृष्ण-स्यमंतक कथा को पढ़ने या सुनने पर गणेश जी क्षमा भी कर देते हैं। गणेश उत्तर दिशा में विराजमान हैं। नहाने के बाद उन्हें उत्तर दिशा की ओर जल दें। ध्यान रहे, जल को जल में देना है। नदी में स्नान कर रहें हैं, तो जल देने में दिक्कत नहीं है, लेकिन घर में ही स्नान कर रहे हैं तो पहले जहां जल देना हो, वहां जल आदि गिरा दें, तब जल प्रदान करें। जो लोग महीने में आने वाली गणेश चतुर्थी का व्रत रखते हैं, उन्हें पता है कि साल में केवल इस कलंक चतुर्थी में ही चंद्रमा, गणेश जी और चतुर्थी माता को दिन में ही अर्घ्य देना होता है बिना चंद्रमा देखे।

गणेश जी को सर्वाधिक प्रिय है दूर्वा। गणेश जी पर 21 दूब नित्य चढ़ानी चाहिए। क्यों? इसलिए कि धर्मशास्त्रों में लिखा है कि यह 21 प्रकार के दुखों को नष्ट कर मोक्ष दिलाती है। पहले एक और उसके बाद दो-दो कर के दूर्वागणेश जी को चढ़ाएं। शमी चढ़ाने से गणेश-शिव प्रसन्न होते हैं।

पार्वती ने परीक्षा में सफल होने के बाद देवों द्वारा दिया मोदक गणेश जी को प्रदान किया था। जानते हैं उस मोदक की खासियत क्या थी? उसे खाने वाला अमर होता, सभी शास्त्रों का ज्ञानी बनता और लेखक और चित्रकार होता। वैसे गणेश जी को मूंग की दाल का मोदक सबसे ज्यादा प्रिय है।

वैसे इस उत्सव को महाराष्ट्र में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन अब दक्षिण व उत्तर भारत में भी बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। लोग बड़ी ही श्रद्धा व प्रेम से गणेश जी की मूर्ति की स्थापना अपने घर, गली या मोहल्ले में करते हैं और रोज़ उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। इस दौरान सारा वातावरण भक्ति रस में डूब जाता है। तीन, पांच या दस दिन बाद मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। गणेश जी की मूर्ति विसर्जन के पीछे भी खए मान्यता है कि जिस प्रकार घर में मेहमान आते हैं तो अपने साथ कुछ लेकर आते हैं ठीक उसी प्रकार भगवान को भी हम हर वर्ष अपने घर बुलाते हैं, वे हमारे घर में पधारते हैं और कुछ न कुछ हमारे लिए अवश्य लाते हैं…इस तरह ये माना जाता है कि गणेश जी अपने साथ सुख, समृद्धि व खुशहाली अपने साथ लाते हैं।