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Way to Spirituality: नवरात्रि उत्सव के पीछे आध्यात्मिक नज़रिया क्या है ? जानिए

अध्यात्म डैस्कः  नवरात्रि पर्व को यदि अध्यात्म के साथ जोड़कर देखा जाए तो इसमें कोई असमंजस की बात नहीं…क्योंकि नौ पवित्र रात्रियों का ये पर्व प्रकृति की ओर से मानव को एक उत्तम भेंट है। इन नौ रात्रियों में सारा वातावरण देवी की पूजा-अर्चना, मंत्रोच्चारण, मंदिरों की घंटियों व जय-जयकार से गुंजाएमान हो जाता है….इन नौ दिनों तक व्रत, उपवास, साधना व पूजा-पाठ करने का विशेष महत्व होता है लेकिन साथ ही मंदिरों में लगी भक्तों की लंबी कतारें उनमें भक्ति, श्रद्धा व आत्म संयम के भावों को बढ़ा देती हैं…इन नौं दिनों में मनुष्य को अपने भीतर की मलीनता को मिटाकर नवनिर्माण के आध्यात्मिक कार्यों में गतिशीलता मिलती है।

सिर्फ यही नहीं नवरात्रि के दौरान उपवास व्रत और तप से सकारात्मकता, सृजनात्मकता व सात्विकता की ओर एक नई शुरुआत होती है…प्रकृति भी पुराने को अलविदा कह नवीन को धारण करती है व शीत के आगमन की तैयारियों में जुट जाती है…जानवर, कीट, पतंग शीतनिद्रा में चले जाते हैं…वैदिक विज्ञान के अनुसार पदार्थ अपने मूल रूप में वापस आकर पुनःनिर्माण करता है…असल में यह सृष्टि सीधी रेखा में नहीं चल रही है बल्कि चक्रीय है, प्रकृति द्वारा लगातार पुनर्नवीनीकरण हो रहा है जो की कायाकल्प की एक सतत प्रक्रिया है…नवरात्रि उत्सव अपने मन को वापस अपने स्त्रोत की ओर ले जाने के लिए है….क्योंकि नवरात्रि में नौं दिनों तक रखे जाने वाले उपवास, प्रार्थना, मौन व ध्यान के माध्यम से जिज्ञासु अपने सच्चे स्त्रोत की ओर यात्रा करता है…उपवास के द्वारा शरीर विषाक्त पदार्थ से मुक्त होता है, मौन रहने से हमारे वचनों में शुद्धता आती है…ध्यान करने से अपने अस्तित्व से साक्षात्कार होता है। जिससे बुरे कर्मों से मुक्ति मिलती है…।

नवरात्रि आत्मा अथवा प्राण का उत्सव है, ये माना जाता है कि इस उत्सव को मनाने से महिषासुर (अर्थात जड़ता), शुंभ-निशुंभ (गर्व और शर्म), मधु-कैटभ (अत्यधिक राग- द्वेष) को नष्ट किया जा सकता है। इसके अलावा जड़ता, गहरी नकारात्मकता और मनोग्रस्तियां यानी रक्तबीजासुर, बेमतलब का वितर्क (चंड-मुंड) और धुंधली दृष्टि (धूम्रलोचन) को केवल प्राण और जीवन शक्ति ऊर्जा के स्तर को ऊंचा उठाकर ही दूर किया जा सकता है।

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