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धर्म एवं आस्थाः पति-पत्नी के रिश्तें में प्यार की मिठास घोलता व्रत “करवाचौथ”, आइए जानते हैं करवाचौथ का महत्व और पौराणिक कथा

धर्म एवं आस्थाः शादी सिर्फ एक रिश्ता ही नहींं बल्कि एक ऐसा पवित्र बंधन है जिसमें एक-दूसरे का साथ जन्म-जन्मांतरों तक बंध जाता है। असल में ये व्रत पति-पत्नी के रिश्ते में प्यार, ईज्जत, अपनापन व मिठास घोलने का काम करता है। जिसमें हर स्त्री की यही कामना होती है कि उसे जो भी वर मिले वह उसे प्यार, सम्मान व इतना स्नेह दे कि वो प्यार सात जन्मों तक एक-दूसरे को जोड़े रखे। ऐसे में करवाचौथ का व्रत हर साल और हर बार जीवन में एक नईं उमंग, एक नईं याद और एक नए उत्साह के साथ आता है और जीवन में फिर से प्यार की मिठास भर जाता है। ये दिन महिलाओं के लिए बेहद खास होता है क्योंकि इस दिन सौलह श्रृंगार करके, हाथों में चूड़ियां, माथे पर बिंदिया और सिंदूर, होठों पर सुर्ख लाल रंग, आंखों में काजल, यानीकि सोलह श्रृंगार किए हुए लाल जोड़े में नई-नवेली दुल्हन की सजी-संवरी महिलाएं एक बार फिर से अपनी शादी के दिन की याद मन में लिए अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हुई ये व्रत रखती हैं।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक इस व्रत को द्वापर युग से जिस श्रद्धा व आस्था के साथ मनाया जाता था आज भी इस व्रत की उतनी ही महत्ता है। ये व्रत आज भी पति-पत्नि के रिश्तों को मजबूती प्रदान करता है। सभी सुहागनें अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए इस व्रत को रखती हैं।

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करवाचौथ का महत्व क्या हैः-

सुहागन महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा, लंबी आयु, उन्नति और मंगलकामना के लिए निर्जला रह कर ये व्रत रखती हैं व शाम को भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश व कार्तिकेय भगवान की पूजा के साथ सुहाग की वस्तुओं की पूजा करने के उपरांत चांद को अर्ध्य देती हैं। करवाचौथ पूजा

इस दिन सुहागनें शाम के समय सोने, चांदी या मिट्टी के करवे के साथ परिवार और आस-पड़ोस की महिलाएं मिलकर एक साथ पूजा करती है। इस दौरान वे साथ-साथ कथा पढती हैं व एक-दूसरे के साथ करवे का आदान-प्रदान करती हैं व मंगल गीत गाती है। मां गौरी और गणपति से सौभाग्य देने की कामना करती हैं। रात को चंद्रमा को अघर्य देने के बाद अपने पति व घर के बड़े बुजुर्गों से सदा सुहागन होने का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। इसके बाद ही भोजन ग्रहण करती हैं।

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करवाचौथ व्रत की पौराणिक कथा-

करवाचौथ व्रत की अनेकों कथाएं हैं जो कि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरह से पूजा के समय की जाती हैं। किंतु हमारे विद्वानों के अनुसार जिस कथा को सबसे प्रमाणिक माना गया है वो इस प्रकार है। कहते हैं ये कथा स्वयं भगवान कृष्ण द्वारा द्वापर युग में इस व्रत के महत्व को लेकर कही गई थी। दरअसल, एक बार अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर गए थे। कई दिनों तक जब उनकी कोई खबर न मिली तो उनकी पत्नि द्रोपदी चिंतित हो उठी व उसने कृष्ण भगवान का ध्यान कर उन्हें अपनी चिंता व्यक्त की। तब श्री कृष्ण ने यह कथा द्रोपदी को सुनाई और करवाचौथ व्रत का महत्व बताया।

श्री कृषण कहते हैं, हे द्रोपदी ! पति की सुरक्षा से जुड़ा इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने महादेव से किया था। तब महादेव ने मां पार्वती को करवाचौथ का व्रत बतलाया था। इस व्रत से पत्नी अपने पति की रक्षा कर सकती है। सुनो द्रोपदी तुम्हें तुम्हारें पति की रक्षा व लंबी उम्र की कामना करने हेतू ये व्रत बतलाता हूं, प्रचीन काल में एक ब्राहमण के चार पुत्र और एक पुत्री थी। चारो भाई अपनी बहन को बहुत प्रेम करते थे और उसका छोटा सा कष्ट भी उनसे देखा नहीं जाता था। ब्राहमण की पुत्री का विवाह होने के बाद एक बार जब वह मायके में थी, तब करवाचौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को पूरी श्रद्धा व विधिपूर्वक रखा, पूरे दिन निर्जला रही। उसके चारों भाई परेशान हो गए कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी पर बहन चंद्रमां को देखकर ही जल ग्रहण करेगी।

भाईयों से बहन को भूखा-प्यासा देखकर रहा न गया और उन्होने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल के पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी छ्तराने लगा, तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज़ दी, देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण कर लो। बहन ने ऐसा ही किया। भोजन करते ही उसके पति की मृत्यु का समाचार मिला। अब वह दुखी हो विलाप करने लगी। उस समय वहां से रानी इंद्राणी निकल रही थी उनसे उसका दुख देखा न गया।

वह विलाप करती हुई ब्राहमण कन्या के पास गई। तब ब्राहमण कन्या ने अपना सब दुख कह डाला। तब इंद्राणी ने कहा, तुमने बिना चंद्रदर्शन के ही करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया था इसीलिए यह कष्ट तुम्हें मिला। अब तुम एक वर्ष बाद आनेवाली चतुर्थी तिथि का व्रत नियमपूर्वक करने का संकल्प लो तो तुम्हारे पति जीवित हो जाएंगे। ब्राहमण कन्या ने रानी इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ के व्रत का संकल्प किया। इस पर उसका पति जीवित हो उठा और वह पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्रप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएं अपने अखंड सुहाग की प्रप्ति के लिए करवाचौथ का व्रत करती हैं। इस दिन महिलाएं दुल्हन की तरहं तैयार होती हैं व दिनभर भगवान से अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।

इस दिन घर में शांति का वातावरण बनाए रखना चाहिए। पारिवारिक कलह से बचें। इसके पीछे ये भी मान्यता है कि यदि पति-पत्नि इस दिन झगड़ते हैं तो पूरा साल ऐसी ही परिस्थितियां बनती रहती हैं।