याद कीजिए एक वो दिवाली थी, जब बचपन में मां और पिताजी सारें जहां की खुशियां हमारे कदमों पर लाकर रख देते थे। याद कीजिए वो बचपन, जब पिताजी हर दिवाली अपने बोनस का इंतज़ार सिर्फ इसलिए किया करते थे कि उसमें वो खर्चें भी पूरे हो जाएंगे जो महीने की तन्ख्वाह भर से भी अधूरे रह जाते थे। अरे हर साल की तरह अधूरे रहे आपके वो महंगे सपने…आपके क्रिकेट की वो किट या आपको लेकर दिया वो पहला सबसे महंगा मोबाइल या लेपटॉप, आपकी कॉचिंग फीस की अगली इन्स्टॉलमेंट जिसे देने के लिए वो अपनी सेविंग्स में बोनस भी जोड़ दिया करते थे और मां से कह देते थे कि इस बार बोनस मिला नहीं या पी एफ से निकाली कुछ राशि, सिर्फ इसलिए निकाल लिया करते थे….ताकि वो पैसे आपके भावी भविष्य की बुनियाद बन सकें। चाहे आज आप इंजिनियर, डॉक्टर या फिर किसी बड़ी मल्टीनेशन्ल कंपनी में किसी बड़ी पॉजिशन पर कार्यरत हैं, आज चाहे पिता जी की तन्ख्वाह से कहीं गुना ज्यादा आपका सेलरी पैकेज है, पर एकबार याद कीजिए कि आपके चेहरे पर हर वो खुशी देखने के लिए उन्होंने शायद अपने लिए कुछ नहीं जोड़ा सिर्फ आपके ही सपनों को पूरा करने के लिए वो सारी ज़िंदगी संघर्ष करते रहे।
अब जो उनकी रिटायरमेंट के बाद उनके पास रह गया है वो है पूरानी अलमारी में टंगे उनके वो सफारी सूट, जो उनके ढल चुके शरीर में अब पूरे नहीं आते। उनका वो ब्रिफकेस जो ऑफिस लेकर जाया करते थे, आज भी उनके जवां और एक्टिव दिनों की उन्हें अक्सर याद दिलाता है। उनकी पुरानी एलबम जो अक्सर दोनों मां-बाप अकेले में बैठकर देखा करते हैं और आपको याद किया करते हैं, क्योंकि आपके पास शायद अब वक्त थोड़ा कम है उनके साथ समय बिताने के लिए….।
अगर आपके घर में भी बूढ़े मां-बाप या दादा-दादी हैं और हो सकता है अब उनकी बूढ़ी हड्डियों में इतनी ताकत नहीं रही कि वो अपने बिस्तर से उठ पाएं लेकिन क्या आपका फर्ज़ नहीं बनता कि अब आप अपनी बारी पूरी करें और देखें कि उनके पास किस चीज़ की कमी हैं ? उन्हें लाकर दें, अगर वो बीमार हैं तो उनका प्रॉपर चेकअप करवाएं क्योंकि वो आपसे कभी कहेंगे नहीं। पहले आप बच्चे थे आज वो भी बच्चे की तरह हैं उन्हें प्यार व सम्मान दें, उनसे बात करें, उन्हें अकेला न छोड़ें, उन्हें अनदेखा करने से पहले ज़रा एकबार अपना बचपन याद कर लें कि वो आपको अपनी आंखों से एकबार भी दूर नहीं किया करते थे आपकी आंख से निकले एक आंसू का मतलब था जैसे कि उनके कलेजे पर न जाने कितने तीर चुभें हों। आपने न जाने कितनी बार अपनी मां से ऊटपटांग सवाल पूछे थे लेकिन उतनी बार मां ने आपको अपनी गोद में उठाकर चूमा था। आज जब वो इस हालत में हैं जब उन्हें पता नहीं चलता कि वो थोड़ा ज्यादा बोलने लगे हैं और ऊंचा सुनने लगे हैं। उनके ज्यादा बोलने से उनकी बातें अब आपको लेक्चर देने जैसी लगती हैं। लेकिन हमेशा याद रखें कि बुढ़ापा एक दिन आप पर भी आएगा अगर आज आप अपने बच्चों के सामने मां-बाप या दादा-दादी के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे तो यहीं से आपके बच्चे भी सीखेंगे, आगे आप समझदार हैं।
इस दिवाली मेरी और से आपको ढेरों शुभकामनाएं लेकिन साथ ही एक गुज़ारिश भी कि इस दिवाली बोनस पर घर के बुजुर्गों को भी कुछ गिफ्ट करें। अगर आप घर से कहीं दूर हैं तो कम से कम ये कोशिश करें कि हर त्योहार अपने परिवार के साथ ज़रूर मनाएं और अगर आप अपने मां-बाप के साथ नहीं रहते तो कम से कम त्योहार पर तो उनसे मिलने ज़रूर जाएं क्योंकि उनके लिए सबसे बड़ा गिफ्ट आप ही हैं। इसबार दिवाली उनके साथ मनाएं उन्हें घर के किसी अंधेरे कमरे में अकेला न छोड़ें। कृपया वो बचपन वाला घर फिर से रोशन कर दें।
संपादकः मनुस्मृति लखोत्रा