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Blog: *वैदिक विज्ञान, वायरस, बैक्टीरिया, संक्रमण, गोबर, अग्निहोत्र आदि…

गोबर और गोमूत्र की बात करने वाले भक्त गण 5000 वर्षों से germs, अदृश्य जीवाणुओं और उनके द्वारा फैलाई जाने वाली महामारियों और उनके इलाज की जानकारी  रखते हैं ! 

Yashendra
लेखक – राय यशेन्द्र प्रसाद संस्थापक, आर्यकृष्टि वैदिक साधना विहार वैदिक संस्कृति के अन्वेषक, लेखक, फिल्मकार भू.पू. सीनियर प्रोड्यूसर एवं निर्देशक, ज़ी नेटवर्क भू.पू. व्याख्याता ( भूगोल एवं पर्यावरण), मुम्बई
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जब अंग्रेज़ो ने हजारों वर्षों से चले आ रहे चेचक टीकाकरण को जाना तो उनके डॉक्टर Dr. J Z Holwell ने 1767 में लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिसियन्स में इसपर अपनी रिपोर्ट पेश की। उन्होंने जब ये कहा कि भारत के ब्राह्मण वैद्य कहते हैं कि वातावरण में बीमारियाँ फैलाने वाले अदृश्य जीवाणु रहते हैं तो गोरे यह कहकर हंसने लगे कि ब्राह्मणो को सब ‘अदृश्य शक्तियाँ’ ही नज़र आती हैं, उन भक्तों को कोई समझ नहीं !

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 Royal College of Physicians और पश्चिम को तब Germs /virus/bacteria के बारे में पता ही न था, विशेषकर उनसे संक्रमण और महामारी फैलने के बारे में ! 
उन मूर्खों को यह उम्मीद नहीं थी की उसी अदृश्य जीवाणुओं के सहारे Jenner 1796 में टीका विकसित करेंगे, Germ Theory ( 19 सदी)  का जन्म होगा और उसको लेकर एलोपैथी का जन्म होगा और फिर भारत के गुलाम लोग अपने ही आयुर्वेद को पिछड़ा कह के हँसेंगे !!! Holwell के बहुत पहले चौदहवीं -पंद्रहवी शताब्दी के लेखों में भी भारत के चेचक के टीकों का उल्लेख है जो ‘प्राचीन काल’ से व्यवहार में थे !!सूक्ष्म अदृश्य जीवाणुओं का ज्ञान भारत को हज़ारों वर्षों से है जबकि “आधुनिक विज्ञान” को जुम्मे-जुम्मे कुछ ही दिन हुए हैं।
Holwell का उक्त रिपोर्ट ऑनलाइन उपलब्ध है। https://quod.lib.umich.edu/e/ecco/004794642.0001.000?view=toc
Jenner ने जब टीका बनाया तो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारतीय वैद्यों के टीकों पर ban लगा दिया और Jenner का टीका लेने को मज़बूर किया। ऐसा चिकित्सा के कई क्षेत्रों में हुआ और स्वास्थ्य के इलाज़ के क्षेत्र में भारतीय पद्धतियों की रीढ़ तोड़ दी गयी. आज़ादी के बाद नेहरू ने अंग्रेज़ों का सिखाया और वामपंथियों का सजाया हुआ syllabus जारी रखा. नतीजा यह कि भारत का एक शिक्षित व्यक्ति यहाँ महान विकसित विज्ञान और तकनीकों के बारे में नहीं जान रहा है. संस्कृत से उसे inferiority complex है.  यह तो कई विदेशियों ने शोध किये और अब भारत के लोग जग रहे हैं. 
*19वीं सदी में यूरोपीय डॉक्टर बिना हाथ धोये कई मरीजों का ऑपरेशन करते थे। जबकि हज़ारों वर्षों से 30 से अधिक एंटीसेप्टिक द्रव्यों का उपयोग भारत में होता आया है !* 
Antonie Von Leeuwenhoeck (17  सदी) को microbes की जानकारी थी पर उनके पूरे dynamics और बीमारियों से सम्बन्ध की समझ नहीं थी। जबकि ईसा पूर्व कई हज़ार वर्षों से भारत में टीकाकरण (inoculation) होता आया था !
इसलिए गोबर और गोमूत्र का उपयोग करने वाली भारतीय वैज्ञानिक संस्कृति इतनी advanced है कि उसपर हँसने वाले दया के पात्र ही हैं।
हमें यह नहीं ignore करना चाहिए कि आज के भ्रष्ट वैज्ञानिकों की ही देन है modified corona virus का biological weapon. वाम पंथी और जेहादी मानसिकता वाले मानव सभ्यता के लिए खतरा हैं।
गोबर और गोमूत्र का विभिन्न संक्रमणों से लड़ने में प्रभावशाली उपयोग है। इनसे घर द्वार को लीप कर और गोबर के कण्डों पर गुग्गुल-कर्पूर, जड़ी बूटी का धुआँ कर घर को संक्रमण मुक्त रखना भारतीयों को युगों से आता है। फिर प्रतिदिन सूर्योदय और सूर्यास्त के वक़्त गाय के गोबर के कण्डों पर *अग्निहोत्र की दो आहुति* pathogenic germs को खत्म कर शरीर और ब्रेन को strengthen करती है ये युगों से आर्यों की दैनिक चर्या है। 

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इसके scientific research की जानकारी DIPAS ( Defence Institute of Physiology and Allied Sceinces), Delhi या उसके भूतपूर्व निदेशक Dr. W. Selvamurthy से प्राप्त कर सकते हैं जिन्होंने अग्निहोत्र पर हुए शोध को lead किया था। 


-यशेन्द्र