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Happiness is Free: वक्त रहते सही निर्णय लेना चाहिए नहीं तो बाद में सिर्फ पछताना पड़ता है

एक फिलॉसफी के प्रोफेसर अक्सर अपने स्टूडेंट्स को लाइफ की छोटी-छोटी बातें समझाने के लिए कुछ अलग-अलग तरीके आज़माया करते थे। एक दिन प्रोफेसर ने अपने सभी स्टूडेंट्स को बुलाया और कहा कि- आज मैं तुम्हें एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात समझा रहा हूं जो आपके लाइफटाइम काम आएगी। सभी स्टडूडेंट्स ध्यान से प्रोफेसर की बात सुनने लगे।

प्रोफेसर ने पानी से भरा एक जार लिया और उसमें मेंढक डाल दिया। पानी में जाते ही मेंढक उसमें आराम से तैरने लगा। इसके बाद प्रोफेसर ने उस जार को आग पर रख दिया और गर्म करना शुरू किया। बर्तन का पानी धीरे-धीरे गर्म होने लगा। बर्तन में जो मेंढक था वो पानी के बढ़ते तापमान के अनुसार खुद को एडजस्ट करने लगा। धीरे-धीरे पानी और गर्म होने लगा, लेकिन मेंढक को कोई फर्क नहीं पड़ा। वह खुद को तापमान के अनुसार ढालता रहा। कुछ देर बाद पानी का तापमान इतना अधिक हो गया कि वो उबलने लगा। अब मेंढक की सहने की क्षमता जवाब देने लगी। उस बर्तन में अब मेंढक का रहना मुश्किल हो चुका था। तब मेंढक छलांग मार कर बर्तन से बाहर आने की कोशिश करने लगा लेकिन पानी इतना गर्म हो चुका था कि मेंडक अपनी पूरी ताकत लगाने के बावजूद उस पानी से भरे बर्तन से नहीं निकल पाया। प्रोफेसर ने तुरंत उस मेंढक को बाहर निकाला और स्टूडेंट्स से कुछ सवाल पूछे।

प्रोफेसर ने स्डूडेंट्स से पूछा कि मेंढक बर्तन के बाहर छलांग क्यों नहीं लगा पाया ? सभी ने अलग-अलग उत्तर दिए। तब प्रोफेसर ने कहा कि- मेंढक चाहता तो तभी बाहर आ सकता था, जब मैंने पानी से भरा बर्तन आग पर रखा था, लेकिन मेंढक खुद को तब तक वातावरण के अनुकूल बनाने की कोशिश करता रहा, जितना वो सहन कर सकता था।
जब उसे लगा कि अब जिंदगी बचाने के लिए बाहर जाना ही पड़ेगा, तो वह छलांग नहीं लगा पाया, क्योंकि खुद को अनुकूल बनाने के चक्कर में उसकी सारी एनर्जी पहले ही नष्ट हो चुकी थी। अगर मैं उसे बाहर नहीं निकलता तो मेंढक मारा जाता।

इस कहानी से क्या सीख मिली ?
प्रोफेसर ने अपने स्टूडेंट्स को समझाया कि हमारी जिंदगी भी इस मेंडक की तरह ही होती है। हम अपनी परिस्थितियों के साथ हमेशा समझौता करने में लगे रहते हैं। सिर्फ इसी चक्कर में कि शायद अब कुछ अच्छा होगा..अब अच्छा होगा जिस वजह से हम उनसे निकलने का प्रयास ही नहीं कर पाते। जब पूरी तरह से हम परिस्थितियों के वश में हो जाते हैं, तब हमें लगता है कि काश हमने सही समय पर निर्णय ले लिया होता, लेकिन तब तक समय निकल चुका होता है। कई बार बुरे हालातों में या मतलबी लोगों के साथ एडजस्ट करते-करते हमारी अपनी क्षमताएं क्षीण हो जाती हैं, जब हमें फिर से अपने आप को रिवाइव करने का मौका मिलता है तब कई बार फिर से वैसी ही एनर्जी और साहस पाना हमारे लिए नामुमकिन सा हो जाता है, इसलिए अपनी ज़िंदगी को परिस्थितियों के हाथों की कठपुतली न बनने दें सही समय पर निर्णय लेना ही जीवन जीने की कला है।

Image courtesy:- Pixabay