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Blog: कोरोना संकट के बीच कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति : पीयूष चतुर्वेदी

आज जब भारत कोरोना संकट से जूझ रहा हैं और कांग्रेस अपने नकारात्मक राजनीति में व्यस्त हैं तो ऐसे में मुझे 2013 में केदारनाथ में आयी त्रासदी याद आ गयी । उस समय केंद्र और उत्तराखंड, दोनों ही जगह कांग्रेस की सरकार थी । केंद्र में जहाँ मनमोहन सिंह जी सरकार थी वही उत्तराखंड में विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार शासन कर रही थी ।

पहले एक बार पुनः स्मरण करते हैं कि 2013 में उत्तराखंड में यह आपदा क्यों और कैसे आई थी । 14,15,16 एवं 17 जून 2013 को दक्षिणी मानसून एवं पश्चिमी विक्षोभ दोनों सक्रिय थे। इन दोनों प्रक्रियाओं के कारण उत्तराखण्ड में बादल फटने के वजह से बहुत तेज बरसात हुई । जिसके कारण केदारनाथ मन्दिर के पीछे उत्तर दिशा में स्थित चौराबाड़ी झील  (गांधी सरोवर) एवं मन्दिर से दक्षिण दिशा में स्थित वासुकी ताल जो कि 2-3 किमी. दूर स्थित है पूरी तहर भर गये। तेज एवं लगातार हो रही वर्षा के कारण भूस्खलन होने लगा। भूस्खलन से आने वाले अवशादों ने मन्दाकिनी एवं उसकी उपशाखाओं की धारा को रोक दिया। धारा अवरूद्ध हो जाने के कारण अल्पकालिक झीलों का निर्माण हो गया। कुछ देर बाद स्थायी एवं अल्पकालिक झीलों ने अपनी मर्यादा तोड़ दी, जिसके कारण त्वरित बाढ़ आ गयी। त्वरित आयी बाढ़ ने मन्दिर के पास बायें तट पर स्थित निष्क्रिय धारा को सक्रिय कर दिया एवं कई नई धाराओं को भी उत्पन्न कर दिया। क्योंकि हिमजलीय मैदान पर, नदी की निष्क्रिय धारा पर एवं मंदाकिनी नदी की घाटी में अवैध बस्तियों का निर्माण हो गया था, जिसके कारण नदी की घाटी, नदी के अधिकतम बहाव को धारण करने में सक्षम नहीं थी। अधिक ऊर्जा वाले त्वरित बाढ़ ने केदारनाथ को पूरी तरह से तबाह कर दिया। इस बाढ़ एवं भूस्खलन ने केदारनाथ के नीचे भी मन्दाकिनी घाटी में रामबाड़ा, गौरीकुण्ड, सोनप्रयाग एवं फाटा में भी ऐसी बर्बादी की जैसा इस क्षेत्र में पहले कभी भी देखने को नहीं मिला। हालाँकि सबसे ज्यादा तबाही केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और हेमकुंड साहिब जैसे तीर्थस्थलों पर भारी नुकसान हुआ था । उत्तराखण्ड, मुख्य रूप से केदारनाथ की इस त्रासदी में कितने परिवार एवं लोग समाप्त हो गये, कितने लापता हो ये, कितने घर विहीन हो गये, कितने गाँव, मुख्य मार्ग से कट गये, कितनी सड़कें एवं पगडंडियाँ बह गयी, कितने मकान, दुकानें एवं होटल बह गये एवं क्षतिग्रस्त हो गये, कितने मवेशी मरे यह अभी भी शत-प्रतिशत प्रामाणिकता के साथ नहीं पता है। फिर भी एक अनुमान के अनुसार उस आपदा में 4,200 से ज्यादा गांवों का संपर्क टूट गया था । 11,000 से ज्यादा मवेशी बाढ़ में बह गए या मलबे में दबकर मर गए। ग्रामीणों की 1,309 हेक्टेयर भूमि बाढ़ में बह गई। 2,141 भवनों का नामों-निशान मिट गया । 100 से ज्यादा बड़े व छोटे होटल ध्वस्त हो गए। आपदा में नौ नेशनल हाई-वे, 35 स्टेट हाई-वे और 2385 सड़कें 86 मोटर पुल, 172 बड़े और छोटे पुल बह गए या क्षतिग्रस्त हो गए।

उत्तराखंड के तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुंजवाल ने कहा था कि 10,000 तक लोग मारे गए होंगे । तब केदारनाथ की तत्कालीन विधायक शैला रानी रावत ने भी कहा था कि 10,000 तक लोग मारे गए होंगे । उन दिनों मीडिया में कुछ ऐसी ख़बरें आईं थी कि संयुक्त राष्ट्र ने कुछ गैर सरकारी संगठनों की मदद से सर्वेक्षण करके उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदा में मरने वालो के अलावा लापता लोगों की संख्या 11,000 बताई हैं । कुल मिलाकर आजतक मृतकों और लापता लोगो की वास्तविक संख्या आजतक ज्ञात नहीं हो पायी । आप विनाश का अंदाजा इसी से लगाईये कि जिस रामबाड़ा में लोग केदारनाथ जाते हुए ठहरते थे, उस दिन वहाँ यानि सिर्फ रामबाड़ा में करीब 5 हजार लोग थे, और अगले दिन वहाँ किसी का अस्तित्व तक नहीं था । आपदा की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाईये कि कई लाशें प्रयागराज स्थित संगम तक तैरती हुई आई थी ।

सच कहें तो वो आपदा नहीं जलप्रलय था । लेख पढ़ते वक़्त इस बात का ध्यान रखे कि 14,15,16 एवं 17 जून 2013 को दक्षिणी मानसून एवं पश्चिमी विक्षोभ दोनों सक्रिय थे। इन दोनों प्रक्रियाओं के कारण उत्तराखण्ड में बादल फटने के वजह से बहुत तेज बरसात हुई । 16 जून 2013 की वह काली रात थी, केदारनाथ धाम में घनघोर बारिश हो रही थी। पूजा में लीन श्रद्धालुओं को पहली बार अहसास हुआ कि उनके आसपास से तेजी से पानी बह रहा है। वेग इतना था कि लोग  ठहर नहीं पा रहे थे। कुछ घंटे बाद वेग धीमा हुआ। वह रात तो बीत गई। 17 जून की सुबह जब कपाट खुला और आरती-पूजा शुरू हुई, उस वक्त बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर परिसर में मौजूद थे, तभी अचानक गडग़ड़ाहट सुनाई पड़ी और कुछ समझ में आता मंदिर के पीछे से सैलाब आता दिखाई दिया। पूरा केदारनाथ धाम देखते ही देखते तहस-नहस हो गया। बचा तो केवल बाबा केदारनाथ का मंदिर। पानी के साथ आए एक पत्थर ने धारा को दो दिशाओं में मोड़ दिया जो मंदिर के दोनों तरफ से होकर गुजर गया । इस प्रलय के पीछे एक संदेश था, जब आपलोग गूगल पर केदारनाथ की तस्वीर देखेंगे तो आपको 1962 की एक तस्वीर भी दिखेगी, जिसमें मंदिर के अलावा पूरी केदार घाटी में एक-दो झोपड़ियों के अलावा कुछ नहीं दिखता हैं । 2013 तक आते-आते वहां इतने निर्माण हो चुके थे कि केदारनाथ और हरिद्वार एक जैसा लगने लगे थे । जबकि केदारनाथ निर्वाण का धाम था, मुक्ति का धाम था लेकिन स्वार्थी मानवों ने उस धाम का व्यवसायीकरण कर दिया था । दैनिक जागरण के एक पत्रकार लक्ष्मी प्रसाद पंत ने 2004 में ही इस अनिष्ट की आशंका से एक लेख लिखा था लेकिन सरकार और सरकारी महकमा ने उस रिपोर्ट को झूठा करार कर दिया और चैन की नींद सो गयी थी ।

उस आपदा में सेना के जवानों और NDFR के टीम ने अभूतपूर्व कार्य करते हुए लाखो लोगो की जान बचाई थी । बचाव कार्य में भारतीय सेना के करीब 10 हजार जवान, सेना के हेलीकाप्टर, गोताखोर और वायुसेना के विमान लगाये गए थे । यात्रा मार्ग में फंसे करीब 90 हजार यात्रियों को सेना और NDFR की टीम ने और करीब 30 हजार लोगों को पुलिस ने बचाया था ।

लेकिन यह आपदा कांग्रेस की उदासीनता के साथ-साथ कई लोगो के लिए धन उगाही का अवसर लेकर भी आई थी । कांग्रेस की उदासीनता और संवेदनहीनता का प्रमाण ऐसा था कि तत्कालीन कांग्रेस की केंद्र सरकार द्वारा 23 जून तक उत्तराखंड के लोगो के लिए कोई भी राहत सामग्री नहीं भेजी गयी थी क्योंकि कांग्रेसियों के नजर में उनके भावी प्रधानमंत्री राहुल गाँधी जी इस भयंकर संकट के समय भी विदेश में थे । कांग्रेस के नेता भी परेशान थे क्योंकि बिना उनके भावी नेता के वो राहत सामग्री कैसे भेजे, आखिर फोटो सेशन और न्यूज़ के द्वारा उनका प्रचार कैसे हो पाता अगर वो खुद ही नहीं उस राहत सामग्री भेजने वाले जलसे में शामिल नहीं होते थे । इसी बीच केंद्र सरकार की उदासीनता को देखते हुए वर्तमान प्रधानमंत्री अपने साथ करीब 7500 स्वयंसेवकों और राहत सामग्री के साथ उत्तराखंड पहुच गए लेकिन उत्तराखंड के कांग्रेस की सरकार ने उन्हें राहत शिविरों तक जाने ही नहीं दिया और उनके एक तरह से अरेस्ट करके बैठा दिया । एक तो खुद केंद्र सरकार कोई राहत सामग्री भेज नहीं रही थी जल्दी , तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जब राहत सामग्री लेकर पंहुचे तो कांग्रेस को अपनी राजनीतिक हानि दिखाई दिया और तब पुरे देश में कांग्रेस के इस कुकृत्य पर आक्रोश व्याप्त हो गया था । ऐसे सोनिया गाँधी जी ने आनन्-फानन में राहुल गाँधी को तत्काल विदेश से भारत बुलाया और 24 जून 2013 को एक इवेंट ओर्गनायिज करके आपदा से एक हफ्ते बाद दिल्ली से उत्तराखंड के लिए ट्रको में राहत सामग्री भरकर बकायदा झंडा दिखाकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने रवाना किया । ऐसी थी उदासीनता राहुल गाँधी के कांग्रेस सरकार की ।

इस आपदा में बचाव कार्य के लिए राज्य सरकार ने दिल्ली स्थित सारथी एयरवेज प्राइवेट लिमिटेड के 16 चॉपर भी लगाए थे, जिसके लिए उत्तराखंड की राज्य सरकार हर घंटे का रुपया 75000 प्रति चॉपर भुगतान कर रही थी । इसके वावजूद भी इस कंपनी ने कई परिवारों से लाखो रूपये वसूले थे, तब यह टीवी पर ज्वलनशील मुद्दा बन गया था । उन दिनों के मीडिया रिपोर्ट्स में किसी परिवार से 3 लाख तो महाराष्ट्र की एक फॅमिली के उनके 30 सदस्यों को बचाने हेतु 20 लाख तक की वसूली का भी खबर आया था । उन दिनों जब अधिकांश लोग मदद के लिए सामान लेकर लोग राहत कार्यो में लगे अधिकारियों के पास जाते थे तो राज्य के अधिकारी सामान के बदले पैसे से मदद करने की बात करते थे और सामान लौटा देते थे । जबकि मदद के लिए पहुचे लोगो का कहना होता था कि पीड़ित लोगो को पैसे से ज्यादा अभी तात्कालिक जरुरतो को पूरा करने की जरुरत हैं ।

कोरोना संकट के इस दौर में भी कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति का भी अब दर्शन करिए । 24 मार्च 2020 को Lockdown शुरू होने से पूर्व पी चिदंबरम सहित कांग्रेस के कई दिग्गज नेता तुरंत ही लॉकडाउन लगाने की मांग कर रहे थे और सरकार पर दबाव बना रहे थे, फिर सरकार ने जैसे ही 24 मार्च 2020 को लॉकडाउन किया तो सोनिया गाँधी सहित राहुल गाँधी और उनके वफादार पत्रकारों ने यह प्रचारित करना शुरू कर दिया कि सरकार ने Lockdown जल्दबाजी में किया हैं और साथ ही साथ राहुल गाँधी द्वारा मजदूरों को यह कहते हुए भड़काया गया कि कोरोना सिर्फ 1% लोगो के लिए डेडली डिजीज हैं और बाकि लोगो के लिए कोई खतरा नहीं, जिसका परिणाम ये हुआ कि प्रवासी मजदूर जगह-जगह सोशल डिसटेंसिंग का उल्लंघन कर अपने-अपने गृह राज्य जाने के लिए भीड़ इकठ्ठा करने लगे, दिल्ली और मुम्बई में प्रवासी मजदूरो के भीड़ का नजारा बहुत भयावह था क्योंकि अधिकांश प्रवासी मजदूर कोरोना से डरे बिना, बिना कुछ सोचे समझे हजारों किलोमीटर की यात्रा पैरों से करने का निर्णय ले लिए क्योंकि दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान की राज्य सरकारों द्वारा वे उपेक्षित किये जा रहे थे, ऐसा ही कुछ गुजरात में भी देखने को मिला । फिर जब कोरोना पोजिटिव हुए मरीज से आम जनता को सतर्क करने के लिए आरोग्य सेतु ऐप को सरकार द्वारा लांच किया गया और जनता को डाउनलोड करने के लिए कहा गया तो राहुल गाँधी ने जनता को भड़काते हुए यह कहा कि “आरोग्य सेतु से कोई लाभ नहीं होने होने वाला, सरकार सिर्फ आपका डाटा कलेक्ट करना चाहती हैं ।” जबकि आज जिसने में अरोग्यसेतु ऐप को डाउनलोड किया हैं वो जानता हैं कि वो कितने काम का ऐप हैं क्योंकि अगर हमारे इर्द-गिर्द 500 मीटर के दायरे में कोई भी कोरोना संक्रमित मरीज हैं तो हमें तुरंत ही GPS के माध्यम से अलर्ट कर देता हैं ।

कोरोना संकट के इस दौर में जब शुरुवात में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपए की तुरंत राहत पैकेज की घोषणा के साथ जरूरतों के खातों में रुपया ट्रान्सफर करवाया तो विपक्ष खास तौर से कांग्रेस और उनके द्वारा पोषित पत्रकारों ने हाय तौबा मचाते हुए कम से कम 5-6 लाख करोड़ की आर्थिक सहायता देने मांग की । हालाँकि शुरुवात में राहुल गाँधी जब 75 हजार करोड़ की ही मांग कर रहे थे, उसके पूर्व ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा कर चुके थे । लेकिन 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपए की घोषणा होने के बाद कांग्रेस और उनके द्वारा पोषित पत्रकारों ने हाय तौबा मचाते हुए GDP का 5-6% हिस्सा आर्थिक सहायता के रूप में देने मांग की । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब इनकी मांगो से भी ज्यादा भारत की जीडीपी का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा यानि 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज दिया तो ये पुनः निम्न स्तर की राजनीति पर उतर कर यह कहने लगे कि “इतना पैसा आएगा कहा से? पैसे पेड़ पर लगे है क्या?” ।

अंत में अब आईये जानते हैं कि केदारनाथ आपदा के समय तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कितने का राहत पैकेज दिया था ! तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने ने उत्तराखंड राज्य के सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण किया और ₹1,000 करोड़ (US$146 मिलियन) की आर्थिक सहायता पैकेज की घोषणा राज्य में आपदा राहत प्रयासों के लिए की थी । इतनी भीषण आपदा के समय मात्र ₹1,000 करोड़ (US$146 मिलियन) की आर्थिक सहायता पैकेज और आज 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज पर निम्नस्तर की राजनीति होती हैं । बाबा केदारनाथ से प्रार्थना हैं कि संकट की इस घड़ी में देश के राजनेताओं के अन्दर सकारात्मक राजनीति करने की क्षमता को विकसित करे ताकि भारत अपने पैरो पर पुनः दौड़ना शुरू कर दे ।


फोटो साभार – गूगल
न्यूज़ फोटो साभार – एनडीटीवी, जागरण और आजतक  

पीयूष चतुर्वेदी

प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)