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Religion & Faith: कार्तिक मास में ब्रज की चौरासी कोस परिक्रमा का क्या महत्व है, जानिए क्या है कथा ?

अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला ये कार्तिक मास असल में दीपोत्सव का आह्वाहन है। कार्तिक मास के शुरू होते ही देश में दीपदान, पवित्र नदी में स्नान, श्रीमद्भावत का श्रवण, तारों की छांव में स्नान और दान का बड़ा ही महत्व माना जाता है। खासतौर पर ब्रजमंडल इस मास में कृष्णमय हो उठता है और कान्हा के भक्त खासतौर पर इन दिनों चौरासी कोस की परिक्रमा करते हैं और जो नहीं कर सकते वो भक्त गोवर्धन की सप्तकोसी या वृंदावन की पंच कोसी या मथुरा की पंचकोसी अथवा राधारानी की गहवरवन की परिक्रमा करते हैं और यदि किसी कारण से भक्त इन परिक्रमाओं को नहीं कर पाते तो वे वृंदावन में रखी गिर्राज शिला की परिक्रमा करते हैं, कहते हैं ये वही शिला है जिसे भगवान श्यामसुंदर ने स्वयं सनातन गोस्वामी को दिया था। इन परिक्रमाओं के पीछे भी एक कारण माना जाता है, वो यह कि इस भूमि पर श्रीकृष्ण ने विभिन्न प्रकार की लीलाएं की थीं। इसी धरा की माटी पर श्रीकृष्ण के पांव पड़े थे यदि उनके चरण की रज का एक कण भी मस्तक से छू जाए तो जीवन धन्य हो जाएगा फिर उस भक्त को कुछ और सोचने की ज़रूरत नहीं। इसीलिए इस मास में ब्रज के विभिन्न तीर्थों की परिक्रमा की जाती है।

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आइए जानते हैं कार्तिक मास ब्रज कथा –

पद्म पुराण के तीसरे अध्याय के अनुसार कार्तिक मास में ब्रज का वास इसलिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि कार्तिक मास को श्रीकृष्ण का माह कहा जाता है। श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि सभी मासों में कार्तिक मास उन्हें बहुत अधिक प्रिय है।  एक कथा के अनुसार श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने जब उनसे पूछा कि किस कारण से वे उनकी पत्नी बन सकीं तो उन्होंने उन्हें बताया था कि चूंकि उन्होंने (सत्यभामा ने) पूर्व जन्म में कार्तिक मास में बहुत अधिक धार्मिक कार्य किये थे जिसके कारण ही वे उनकी पत्नी बन सकी।

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इसके बाद सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा था कि उन्हें कार्तिक मास ही क्यों सबसे अधिक प्रिय है तो उन्होंने सत्यभामा को नारद मुनि और महाराज वेण के पुत्र पृथु महराज के बीच का वातार्लाप सुनाया।

असुर शंखरासुर ने जब यह देखा कि यद्यपि वह देवताओं को पराजित कर चुका है फिर भी देवता शक्तिशाली बने हुए हैं तो उसने इसका कारण खोजा और पाया कि वेदमंत्रों के कारण उनकी शक्ति क्षीण नही हुई है। इसके बाद वह ब्रह्मलोक से वेदों को चुरा लाया और उन्हे समुद्र में फेंक दिया।

इसके बाद ब्रह्मा के नेतृत्व में वे विष्णु भगवान के पास गए और उनकी योग निद्रा समाप्त करने के लिए वेदमंत्रों का पाठ किया। योग निद्रा से उठने के बाद ही भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर वेदों को समुद्र से निकाल लिया था। उन्होंने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते है कि कार्तिक मास में जो दीपदान, परिक्रमा आदि करता है वह उनके लोक में आता है आर्थात उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसे किसी तीर्थ जाने की आवश्यकता नही है।