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Poetry Breakfast:- “क़ायनात से परे”

 

ये मन भी कमाल की चीज़ है…अगर चाहे तो अपने अंदर समंदर जितना दर्द छुपा ले..लेकिन अगर ये चाहे तो उसी समंदर से अहसासों की गागर भर कुछ इस क़दर कोरे क़ागज़ पर उडेल देता है कि शब्द अपने आप कविता बनकर उतर जाते हैं और फिर होता है एक करिश्मा….वो करिश्मा ऐसा.. कि कभी तो ये कविता दूसरों को प्रेरणा दे जाती है तो कभी प्यार का अहसास दिला जाती है…कविता एक ऐसी चीज़ है कम्बख्त प्यार करना भी सिखा देती है…तो ग़म भी भुला देती है…और तो और अगर कोई आपसे दिल का हाल पूछने वाला न हो तो…एक दोस्त की तरह आपका सारा दुख अपने अंदर समेट लेती है…ऐसे ही कुछ अहसासों में से निकली ये कविता आपके लिए पेश है…अगर पसंद आए तो लाइक, कमेंट और शेयर करना न भूलें….

मनुस्मृति लखोत्रा