Poetry Breakfast: “कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए, कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए”: गज़लकार दुष्यंत कुमार
1. हुज़ूर आरिज़-ओ-रुख़्सार क्या तमाम बदन मिरी सुनो तो मुजस्सम गुलाब हो जाए उठा के फेंक दो खिड़की से साग़र-ओ-मीना ये तिश्नगी जो तुम्हें दस्तियाब हो जाए वो बात कितनी…