कोई भी रिश्ता जीवन में एक नयीं उमंग, मिठास और खुशियां लेकर आता है….बशर्ते हमें उन खुशियों का आनंद लेने और रिश्तों को निभाने का अंदाज़ आना चाहिए। अब चाहे रिश्ता कोई भी हो उसकी उतनी ही गरिमा और मर्यादा होती है जितनी हमारी ओर से रिश्तों और समाज के प्रति अपनी मर्यादाएं होती हैं। लेकिन आजकल हम रिश्तों को समझने और उसकी गरिमा को बनाए रखने में पिछड़ से गए हैं। जहां हमारी सोच पर एक तरह के अलगाव और स्वार्थ ने कर्फ्यू सा लगा रखा है, न जाने ऐसी कौन सी बातें होती हैं जिनका न तो कोई सिर होता है और न पैर, हम लोग बेवक्त और बेबुनियाद उन बातों को पीस-पीसकर बाल की खाल खींचते रहते हैं लेकिन असल में होता कुछ नहीं। आधे से ज्यादा लोग तो सिर्फ इसलिए परेशान रहते हैं कि उसने मेरे बारे में क्या कहा और क्यों कहा ?

खासतौर पर घरेलू महिलाएं और बुज़ुर्ग इस तरह के तनाव का ज्यादा शिकार होते हैं, इसके पीछे के कई कारण हो सकते हैं जैसे ज्यादातर घर पर ही समय बिताने वाले लोग अधिकतर एक जैसी ही रूटीन फोलो करते हैं, महिलाओं की अगर बात करें तो, रोज़ाना सुबह उठकर घर की साफ सफाई करना, खाना बनाना, बच्चों और परिवार को देखना, बर्तन और कपड़े धोना फिर थककर सो जाना…वगैरह, वगैरह और रही बात बुज़ुर्गों की तो ज्यादातर बड़े-बुज़ुर्ग रिटायरमेंट के बाद तनाव और डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं, उन्हें लगता है कि रिटायरमेंट के बाद जैसे ज़िंदगी खत्म। ज्यादातर बुज़ुर्ग लोग अपना वक्त सोचते रहने, एकांत में बैठे रहने या तनाव में घिरे रहने में बिताने लग जाते हैं।
ऐसे में अपने आप के लिए वक्त न निकाल पाना और अपना अच्छे से रख-रखाव न पाना भी कई तरह के पूर्वाग्रहों से हमें जोड़ देता हैं। अपने जीवन में कोई बदलाव न होता देख उन्हें छोटी-छोटी बातें भी बड़ी लगने लग जाती हैं और फिर हम कई तरह की कश्मकश से जूझते परिवार में अपने होने के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए कुछ न कुछ उधेड़-बुन में लग जाते हैं। इसलिए बेहतर ये होगा कि हमेशा सकारात्मक बने रहें और अपने आप के लिए भी ज़रूर वक्त निकालें जहां आप केवल और केवल अपने आप को समय दें। अपनी पसंद का हर वो काम करें जो हम करना चाहते हैं। अपने अंदर की प्रतिभा को कभी मरने न दें, रोज़ की रूटीन से कुछ वक्त चुराकर अपने आप को भी समय दें। जो वक्त इधर-उधर की बातें करने में गुज़रता हो उसे दरकिनार करें और अपनी दिनचर्या को एक नयीं दिशा दें। आपके बारे में कौन क्या कहता है उसे इग्नोर करें, इससे अच्छा कोई और विकल्प नहीं।
देखिए मेरा तो एक सीधा सा फंडा है लाइफ बहुत छोटी है और कुछ अच्छा करने के लिए वक्त बहुत कम, तो फिर क्यों न अपने और दूसरों के लिए कुछ अच्छा किया जाए। इधर-उधर की बातें छोड़ कर उन्हीं कीमती पलों को अपनी प्रतिभा निखारने या अपनी कमियों को दूर करने के लिए सींचा जाए। वक्त में बड़ी ताकत होती है, हमें उसका एक-एक पल संभालना आना चाहिए। लेकिन हम ये सब जानते हुए भी अनजान से बने रहते हैं और छोटी-छोटी बातों व उलझनों में उलझे रहते हैं। दरकिनार कर दीजिए ऐसी उलझनों को जो आपके मन में कई तरह की गांठे पैदा करें। असल में रिश्तों की गुत्थी भी बड़ी पेचीदा है सुलझी रहे तो अच्छा है, लेकिन अगर उलझ गई तो फिर उनमें पड़ी गांठे कभी खुल नहीं सकती। इसलिए जितना हो सके सकारात्मक रहें और खुश रहें।
धन्यवाद- आपकी शुभचिंतक, मनुस्मृति लखोत्रा