You are currently viewing Happiness is Free: भीतर के संघर्ष से कैसे लड़ा जाए ? मन को शांत कैसे किया जाए ? आइए जानते हैं

Happiness is Free: भीतर के संघर्ष से कैसे लड़ा जाए ? मन को शांत कैसे किया जाए ? आइए जानते हैं

हमारे सारे सीक्रेट्स का बक्सा ये जो मन है न हमें अपने तरीके से नचाता है और हम कब इसके इशारों पर नाचने लग जाते हैं ये हमें भी नहीं पता चलता…तभी तो कहते हैं बाहर के संघर्ष से निपटना तो फिर भी आसान है लेकिन भीतर का संघर्ष ज्यादा खतरनाक होता है, भीतर का यानी मन का…..रोज़ हमारे भीतर कितने ही तरह के संघर्ष चल रहे होते हैं…कई दफ़े आपको भी लगता होगा कि ज़िंदगी की भागमभाग में रोज़ कभी हमें अपने काम की टेंशन रहती है तो कभी अपने घर की…कभी परिवार के किसी सदस्य की तो कभी परिवार के सदस्यों के साथ तालमेल की….और कई बार जब कोई पुराना ज़ख्म रिस आए तो बस फिर कितने ही दिन चैन की नींद तमाम…….तो कभी अपनी किसी गलती या हार पर पछतावा कुछ इस क़दर हमें भीतर से कमज़ोर बना देता है कि फिर से उठ खड़े होने की हिम्मत तक जुटानी मुश्किल हो जाती है….और कभी कोई पुराना किस्सा छेड़ कर बैठ जाएं तो दीमाग दही हो जाता है……तो कभी कोई ग़म इस क़दर चिपक जाता है कि शुगर, बीपी या किसी और बीमारी की सौगात दे जाता है…कुल मिलाकर मान लीजिए मन के भीतर चल रही उलझनों को तोड़ना किसी मकड़जाल से बाहर निकलने से कम नहीं।

20200307_163057-1
Manusmriti Lakhotra, Editor : https://theworldofspiritual.com

तो ऐसे में यदि हम कुछ बातों का ध्यान रख लें तो मेरा मानना है कि हमारा मन, हमारा कहना मानना शुरू कर देगा….इसके लिए ज़रूरत है तो बस आपके थोड़े से सहयोग की….यानीकि सबसे पहले हमें अपने मन को कमज़ोर बनाने वाली बातों पर से अपना ध्यान हटाना होगा….क्योंकि हमारा मन समस्त शक्तियों का स्त्रोत है, मन की दो शक्तियां होती हैं, एक कल्पना शक्ति और दूसरी इच्छा शक्ति और जिसके मन की कल्पना शक्ति बढ़ जाए तो फिर क्या कहने…तब कोई भी व्यक्ति अपनी कल्पना से नईं-नईं खोजें कर सकता है…जिस में जिस तरह के विचार या टैलेंट होगा वह उसकी चरम सीमा तक भी पहुंच सकता है। ऐसे व्यक्ति अच्छे साहित्यकार, कवि, चित्रकार, वैज्ञानिक आदि बन सकते हैं। सही मायने में हमारे मन की एकाग्रता हमें औरों से अलग बनाती है….इसी तरह मन की दूसरे प्रकार की शक्ति यानी इच्छा शक्ति से अपना ध्यान यदि अपने लक्ष्य की और लगाएं तो निश्चित ही हम अपने लक्ष्य को पा सकते हैं लेकिन ये भी हमारी तीव्र या प्रबल इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है कि हमें अपना लक्ष्य कितनी जल्दी पाना है। इसके लिए आइए अपने आप में हम कुछ बदलाव करते हैं। वो क्या बदलाव हैं जो हमारे मन को शांत और खुश रख सकते हैं आइए जानते हैं।

  1. हमारी मानसिक शांति किन चीज़ों से भंग हो रही है हमें उन कारणों को जानना होगाः-

क्या आप जानते हैं हमारे भीतर भावनात्मक और मानसिक रूप से मजबूती देने वाली कुछ चीज़ें होती हैं यदि हम उन्हें नुकसान पहुंचा रहे हैं तो वास्तव में हम अपने मन को क्षति पहुंचा रहें हैं, अपने आदर्शों का कत्ल कर रहे हैं…जैसे अगर हम हर वक्त दूसरों के लिए बुरा बोलते हैं या बुरा करते हैं,बुरे विचार मन में लाते हैं, हमेशा झूठ बोलते हैं, चोरी करते हैं, नशे करते हैं, मेहनत नहीं करते, हमारे जीवन का यदि कोई लक्ष्य नहीं है, हम हमेशा दुखी रहते हैं तो आप सबसे पहले एक काम कीजिए इन बुरी आदतों को अपने जीवन से बाहर निकालना शुरू कर दीजिए, जब भी ऐसे विचार आपके मन में आएं तब तुरंत अपना ध्यान उन विचारों से हटा कर अच्छा संगीत सुनना शुरू कर दें, टीवी देखें या किसी से बात करें, सैर पर जाएं क्योंकि ये सब बुरी आदतें आपके व्यवहार और भावनाओं को नियंत्रण करती है और एक स्वस्थ और अच्छे मन के लिए इन बुरी चीज़ों के लिए कोई जगह नहीं।

  • क्या आप अपने लिए रोज़ना कुछ वक्त निकालते हैं ? अगर नहीं तो अपने ऊपर ध्यान देना शुरू कीजिए

आप अपनी रोज़मर्रा की रूटीन में क्या अपने लिए कुछ ऐसा कर रहें है जिससे आपके मन को अच्छे संकेत मिलें ? शायद नहीं…अगर ऐसा है तो अब से रोज़ व्यायाम करके, संतुलित भोजन लेकर, शांत रहकर, अच्छी नींद लेकर अपनी शारिरिक, मानसिक और भावनात्मक शक्ति को विकसित करने और उसे बनाए रखने में अपने आप की मदद करें।  

  • अपने मन को समृद्ध करने के लिए आप क्या कर रहे हैं ?

हमेशा कुछ नया सीखते रहने की आदत डालें ताकि आपके दीमाग को सीखने और समझने की नयीं चुनौतियां मिलती रहें। आप जितना अधिक ज्ञान प्राप्त करेंगे मानसिक रूप से आप उतने ही मजबूत होते चलें जाएंगे। इसके लिए अच्छी किताबें पढ़ें, अच्छी फिल्में देखें, अच्छा संगीत और भजन सुनें, किसी न किसी कला से जुड़े रहें, अपने अंदर के कलाकार को हमेशा ज़िंदा रखें।

  • अध्यात्म और प्रकृति के साथ जुड़ें

ये ज़रूरी नहीं कि आपको आध्यात्मिक होने के लिए कहीं या किसी के पास जाने की ज़रूर है जैसे प्यार और करुणा का रस भीतर से अपने आप ही जागता है वैसे ही हर किसी के भीतर अध्यात्म का रस भी स्वतः ही होता है बस फर्क सिर्फ इतना है हमें उसे पहचानना है। इसके लिए प्रार्थना, ध्यान, योग और प्रकृति के साथ जुड़ता कुछ ऐसी दवाएं हैं जो कहीं और से पायी ही नहीं जा सकती। इन दिनों कोरोना जैसी महामारी से बचने के लिए जितना हो सके घर में रहकर अपने उन कामों को पूरा करने की कोशिश करें जो आप अब तक नहीं कर पाएं हैं, अपना ध्यान अपने भीतर छुपी कला को निखारने में लगाएं। ये समय असल में अपने बारे में और अपनों के लिए मिला है सो अपनी कमियों को सुधारें और दूसरों को भी अच्छा करने के लिए प्रेरित करें।

धन्यवाद, आपकी दोस्त मनुस्मृति लखोत्रा, मुझसे जुड़ने के लिए आप हमारी वेबसाइट को लाइक, सब्सक्राइब और शेयर अवश्य करें।