यादगार लम्हें: स्वामी विवेकानंद का वो भाषण जिसमें उन्होंने भारत के गौरव, अतुल्य विरासत व ज्ञान की छवि पेश की, जानिए

लेख सेक्शनः स्वामी विवेकानंद, इस नाम और शख्सियत से कौन वाकिफ नहीं? आज का ये दिन हमारे लिए बेहद विशेष हैं। आज ही के दिन 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता…

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यादगार लम्हें : जुहू बीच पर टहलते जिनके क़दम हर सुबह एक नया गीत तराश लाते थे, वो थे शैलेन्द्र…

एक दिन एक शख्स बारिश में भीगते-भागते आरके स्टूडियो में राजकपूर साहब से मिलने पहुंचा और कहने लगा कि वे उनके लिए गीत लिखने के लिए तैयार हैं। राज कपूर…

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यादगार लम्हेः चाहे हम अपनो से कितनी भी दूर क्यों न हों लेकिन कुछ रिश्ते रूहानी होते हैं : “घर से निकले थे हौसला करके, लौट आए खुदा-खुदा करके”…

आज मैं आपको मशहूर गज़लकार जगजीत सिंह की एक खूबसूरत सी गज़ल से रूबरू करवाने जा रही हूं... इस ग़जल के लिरिक्स चंद लाईनों में बहुत बड़ी बात कह जाते…

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यादगार लम्हेः कुछ अनकहे पहलुओं की दास्तान लेकर आती ज़िंदगी… “तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी हैरान हूं मैं”

ये जो ज़िंदगी है न बड़ी ही पेचीदा किस्म की है जिसे समझ पाना हर किसी के बस की बात नहीं होती। हमारी ख्वाहिशें तो बहुत सी हैं ज़िंदगी से.....कभी…

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Poetry Breakfast: जब खूबसूरती चांदी और सोने जैसी लगने लगे तो वहीं से गज़ल बनती है “चांदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल”…

ये दौर भी बेहद खूबसूरत था जब महान गज़ल गायक पंकज उधास ने 1980 के दशक में एक अलग किस्म की गज़ले पेश की। उस समय ग़ज़ल गाने वाले कई…

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Poetry Breakfast: 80 के दशक के एक ऐसे फनकार जिनकी रूहानी आवाज़ आज भी दिलों पर देती है दस्तकः मोहम्मद अज़ीज़ साहब

लेख सेक्शनः मोहम्मद रफी के बाद मोहम्मद अज़ीज एक ऐसे गायक थे जिन्हें गायकी में रफी साहब का वारिस माना जाने लगा। मोहम्मद अज़ीज़ का जन्म 1954 में पश्चिम बंगाल…

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Poetry Breakfast: “घुँघर वाली झेनू वाली झुन्नू का बाबा, किस्सों का कहानियों का गीतों का चाबा”: “पोटली बाबा की”

लेख सेक्शनः ये उन दिनों की बात है जिन दिनों देश में इकलौता टीवी चैनल दूरदर्शन हुआ करता था। ये 90 का दशक था, तब न ही तो केबल टीवी…

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Poetry Breakfast: शर्मा बंधुओं का ये भजन आज भी तरुवर की छाया जैसा लगता है !

1974 में आई फिल्म परिणय का एक भजन बेहद लोकप्रिय हुआ था, खैर, उस वक्त मैं तो नहीं थी लेकिन बचपन में पिता जी अक्सर टेपरिकॉर्डर में इस भजन को…

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Poetry Breakfast: इक कुड़ी जिदा नाम महोब्बत गुम हैः शिव कुमार बटालवी

आईए आज उस दशक की बात करें जब कविताएं आत्मा की गहराईयों से लिखी जाती थी। कविता का एक–एक लफ्ज़ शायर के लिए किसी इबारत से कम नहीं होता था।…

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तो इस दिवाली पापा क्या तोहफा देंगे…!

मुझे आज भी याद है बचपन में दिवाली का कितना इंतज़ार रहता था मुझे और मेरे भाई को। असल में हर दिवाली पिता जी मुंहमांगी गिफ्ट्स जो लेकर दिया करते…

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